मंगलवार, 6 मई 2008

तुर्गनेवः करुणा और आशा


ईवान सेर्गेयेविच तुर्गनेव को पढ़ना मेरे लिए कुछ ऐसी स्मृतियां लेकर आता है जैसे सर्दियों के मौसम में कभी न खत्म होने वाला बारिश का झुटपुटा। शायद इसलिए कि उसी दौरान हमारे शहर में रूसी किताबों की प्रदर्शनी लगा करती थी। हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू में हजारों किताबें... उन्हें बेचने के लिए आने वाले अक्सर अपनी कुर्सी के पास कोयले वाली अंगीठी सेंकते नजर आते थे।

और बचपन में जिस पहले लेखक की रचना से मेरा गहरा और ऐंद्रिक परिचय हुआ.. वह लेखक थे ईवान सेर्गेयेविच तुर्गेनेव।

मैंने उनकी कुल तीन किताबें पढ़ीं हैं.. मगर उनका मेरे मन पर इतना गहरा असर हुआ कि आज भी मैं उनके चरित्रों को नहीं भूल सकता। मेरी मां की पर्सनल लाइब्रेरी में उनकी छोटी सी किताब थी पहला प्यार। भीतर लिखा था- माइ फर्स्ट लव का हिन्दी अनुवाद। किताब के शीर्षक के चलते बारह-तेरह बरस की उम्र में उसे सबके सामने पढ़ना मुझे शर्मिंदा करता था। लिहाजा मैं एक दिन मैं उस लेकर सीढ़ियों पर चला गया। गर्मियों की पूरी दोपहर सीढ़ियों पर बैठकर मैंने वह किताब खत्म कर डाली। यह एक ऐसे किशोर की कहानी थी जो एक युवती को मन ही मन प्यार करने लगता है मगर बाद में उसे पता चलता है कि वह उसके पिता की प्रेमिका है।

थोड़ा बाद में मैंने उनकी पिता और पुत्र तथा एक शार्ट नावेल मू मू पढ़ा। मू मू एक गूंगे-बहरे किसान और एक आवारा कुतिया से उसके लगाव की मानवीय कथा है। पिता और पुत्र का नायक बजारोव मुझे पसंद नहीं था मगर उसी उपन्यास के दूसरे चरित्र पावेल पेत्रोविच से मुझे खासा लगाव हो गया था।

लंबे समय तक (शायद आज भी) मैं तुर्गनेव के चरित्रों का असर मेरे दिमाग पर छाया रहा। तुर्गनेव मुझे हमेशा से एक बड़े लेखक लगे हैं। जीवन को वे एक गौर-रूमानी और तटस्थ नजरिए से देखते हैं। इसके बावजूद उन्हें पढ़ना आपके भीतर एक स्थायी करुणा और जीवन के प्रति आशावादिता का भाव पैदा करता है। उनकी भावुकता आपको कमजोर नहीं करती बल्कि मजबूत करती है।

मेरी निगाह में यह किसी लेखक से मिलने वाली एक बहुत बड़ी बात है...

1 टिप्पणी:

आलोक ने कहा…

दिनेश श्रीनेत, एओऍव वाले? यहाँ देख के अच्छा लगा।

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