बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

हर शहर का अपना एक आसमान होता है


मैं शहरों को उनके आसमान से पहचानता हूं। आप किसी भी शहर की जमीन को जब अपने पैरों से टटोलते हैं... तो थोड़ा ठिठककर चंद कदम पीछे हटकर ऊपर की तरफ देखें। उस आसमान को पहचानें। यकीनन वह वहां से अलग होगा... जहां से आप आए हैं। बस यहीं से शुरुआत होती है उस शहर के आसमान से दोस्ती करने की।

शायद आसमान से मेरे दोस्ताने का एक बहुत-बहुत निजी कारण भी है। बचपन में पिता के गुजरने पर- मैं अक्सर जब कभी उन्हें याद करके छिपकर रोता था तो उस नादानी में मैंने उनकी जगह आसमान तय कर दी थी। मुझे लगता था कि वे वहां से मुझे देख सकेंगे। धीरे-धीरे उम्र बढ़ी पिता धुंधलाती स्मृतियों का हिस्सा बन गए मगर आसमान में पिता साहचर्य और सुरक्षा ने घर कर लिया। मेरे लिये आसमान से दोस्ती की शायद यही शुरुआत हुई।

आकाश से दोस्ती बहुत जल्दी या थोड़े समय में नहीं होती... मगर कई बार वह आपकी स्मृतियों का हिस्सा बन सकता है। मुझे अफसोस है कि मेरे हिस्से में बहुत कम आसमानों से दोस्ती आई। पहला आसमान इलाहाबाद है जो कभी मुझे भूलता नहीं... उस आसमान का नदी और उसके बलुई तट से बहुत गहरा रिश्ता है। वहां के आसमान को महसूस करने के लिए यह जरूरी है कि आपके पांव संगम के तट पर हों। इलाहाबाद एक सुंदर शहर है। जो सहसा उग आए किसी जंगली फूल सा मित्रवत है। मुझे सर्दियों में इलाहाबाद की ओस से भीगी सुबह याद आती है जब स्कूटर के आगे पतंगी कागज जैसे पंख फड़फड़ाती तितलियां उड़ती भागती थीं।

आसमान दरअसल एक पारदर्शी शीशा है... जो आपके उस मन का आईना बन जाता है जो शहर में भटक रहा है।

लखनऊ के आसमान से कभी मेरी दोस्ती नहीं हो पाई। गोमती के पुल से गुजरते वक्त हमेशा शहर का आकाश उस दोस्त की निगाह से आपको देखता है... जिसने इन दिनों आपसे दूरी बना रखी है। वह हमेशा शाम के कारण याद आता है। क्योंकि हर शाम वह डूबते सूरज के संग कत्थई-सुरमई-सा हो जाता है। लखनऊ का आसमान रात को अक्सर दोस्ताना हो जाता है। खास तौर पर सर्दियों की रात को। वह किसी स्त्री की तरह जादुई आकर्षण से भरा होता है। मगर लखनऊ की सुबह का आसमान भी कभी देखें। उन दिनों में जब गर्मियां शुरु होने वाली होती हैं। जैसे कि मार्च-अप्रैल के दिनों में। इस आसमान का हवाओं से गहरा रिश्ता होता। गोमती नदी से भी। चमकती धूप से भी।

बरेली में गुजरे लंबे वक्त में आसमान की स्मृतियां बहुत कम हैं। शाम को जब बस्तियों से सुरमई धुआं उठता है और क्षितिज में पतंगें हल्के-हल्के कांपती नजर आती हैं। बस इतनी ही याद है।

मगर बैंगलोर का आसमान चकित करता है। प्रायद्वीप के उत्तरी हिस्से में रहने वाले जिन लोगों को हवाओं में बसी धुंध के चश्मे से क्षितिज को देखने की आदत हो, उनके लिए नीला आसमान, पारदर्शी हवा और हवाओं के कंधे पर सवार चमकीली धूप एक इतना नया अनुभव है, जैसे विस्मृति के अंधेरे से आकर आपने दोबारा जन्म लिया हो और दुनिया देख रहे हों। साल के कई महीने यह आसमान बादलों से डबडबाता रहता है। और बंगलौर में कभी भी बारिश शुरु हो जाती है। अक्सर शाम को... एक रिमझिम जो घंटों चलती है।

बंगलौर में मौसम एक समान रहता है। दिल्ली के एक मेरे मित्र का कहना था कि यह कुछ समय बाद उबाऊ हो जाता होगा। मगर होता कुछ और है। आप मौसम के बारीक से बारीक नोट्स को पकड़ने लगते हैं। हवा के मिजाज मे आया हल्का सा फर्क भी आपको पता चल जाता है। यहां की सर्दियां सुखद होती है। बाकी साल आप उनके इंतजार में बिता सकते हैं। सर्दियों में मुलायम ऊन सी गरमाहट लिए धूप थोड़ी और चमकीली, आसमान थोड़ा और साफ और हवाएं कुछ और पारदर्शी हो जाती हैं।
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