सोमवार, 21 दिसंबर 2009

साइबर समाज में जनतंत्र


कम से कम जिस तरह अमर्त्य सेन ने अपनी किताब ‘द आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन’ में एक महाबहस की परंपरा में भारतीयता को पहचानने की कोशिश की थी, हम हल्के-फुल्के तौर पर यह तो मान सकते हैं हम हिन्दुस्तानी बहसबाज और जमकर बतकही करने वालों में हैं। यह बहसबाजी वेब 2.0 के दौर में भी अपना रंग दिखा रही है। दुनिया भर में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों का आंकड़ा 2013 तक बढ़कर 2.2 अरब हो जाने की उम्मीद है। बढ़ोतरी में सबसे ज्यादा योगदान एशिया का रहेगा और भारत इंटरनेट यूजर्स के मामले में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर होगा। भारत में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल करने वालों में पिछले साल की तुलना में 51 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

इंटरनेट के इस्तेमाल में भारत की बड़ी हिस्सेदारी जहां चौंकाती है, वहीं ऑनलाइन बिजनेस में इतना बड़ा बाजार बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए आकर्षण बन रहा है। मगर इंटरनेट स्पेस में बहस करता यह भारतीय साइबर समाज क्या सचमुच किसी बड़े बदलाव का वाहक बनने जा रहा है? वह भी एक ऐसा मध्यवर्गीय समाज जिसके बारे में पवन कुमार वर्मा ने अपनी किताब ‘द ग्रेट इंडियन मिडल क्लास’ में चिंता जताते हुए लिखा था, 'परेशानी इस बात की है कि इस देश के सर्वाधिक प्रतिभाशाली तत्व अपनी सामाजिक निष्ठुरता के साथ 'श्रेष्ठ' बने रहने में ही संतुष्ट हैं। ...जाहिर है ऐसे प्रतिभासंपन्न लोगों के देश के साथ कुछ गंभीर गड़बड़ जरूर है।'

इस जगह हमें यह भी सोचना होगा कि क्या वास्तव में एक टेक्नोलॉजी हमारे समाज को बदल रही है या यह महज एक भ्रम है? मनुष्य और टेक्नोल़ॉजी के रिश्तों से जुड़ी इस पेचीदगी को समझने के लिए हम थोड़ा पीछे की तरह चलते हैं। जब ‘द इकोनॉमिस्ट' पत्रिका ने बीसवीं शताब्दी का लेखाजोखा करते हुए लिखा था, 'इस सदी में रेलवे की अहमियत को सिर्फ लोगों और माल को दूर-दराज पहुंचाने तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि इस प्रक्रिया में तेजी से विचारों का भी आदान-प्रदान हो रहा था, विचार; जो घुमक्कड़ों के जेहन में थे, चिट्ठियों में थे, किताबों में और अखबारों में थे।'

इक्कीसवीं शताब्दी में इंटरनेट इसके उलट स्थानीयता की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए दो-तरफा संवाद की असीमित संभावनाओं को जन्म दे रहा है। सिटिजन जर्लनलिज्म को मीडिया में आम जनों की भागीदारी या लोकतांत्रिक पत्रकारिता के रूप में देखा जा सकता है। अपनी किताब 'हाऊ आडिएंसेज आर शेपिंग द फ्यूचर आफ न्यूज एंड इन्फार्मेशन' में शाइनी बोमैन और क्रिस विलिस कहते हैं, 'मूलतः लोगों की भागीदारी के इरादे के साथ खड़े किए गए इस सूचना नेटवर्क ने पहली बार एक स्वतंत्र, निष्पक्ष, खरे और ऐसे विस्तृत माध्यम को जन्म दिया है जिसकी एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सचमुच जरूरत है।'

सिटिजन जर्नलिज्म का विकास इंटरनेट के उस दौर में हुआ, जो नेट की भाषा में 'यूजर जेनरेटेड कंटेट' पर आधारित था। बदलती तकनीकी यह सुविधा लेकर आई कि खबर पढ़ने वाला अपनी राय दे सकता है, किसी मुद्दे पर अपना मत प्रदान कर सकता है और खुद वहां जाकर लिख भी सकता है।

दक्षिण कोरिया की वेबसाइट 'ओह माई न्यूज' को इसी अवधारणा के चलते जबरदस्त सफलता मिली। उसका नारा था- 'हर नागरिक एक रिपोर्टर है'। वेबसाइट के पास 40 से ज्यादा रिपोर्टर और संपादकों की टीम है जिसका कुल कंटेट के सिर्फ 20 प्रतिशत योगदान है। 'ओह माई न्यूज' ने 50 हजार से ज्यादा स्वतंत्र नागरिक पत्रकार तैयार किए जिनकी मदद से वेबसाइट ने वहां के रुढ़िवादी राजनीति माहौल में हस्तक्षेप कर उसके खिलाफ जनमत तैयार करने में अहम भूमिका निभाई।

ब्लाग लेखन भी पारंपरिक समाचार स्रोतों के सामने चुनौती बनकर सामने आया है। बहुत से ब्लागर्स ने लोकतांत्रिक या भागीदारी पत्रकारिता को चुनकर खुद को मुख्यधारा मीडिया के सामने एक विकल्प के तौर पर खड़ा किया है। ब्लाग के विस्तार को हम सूचनाओं के बाजारीकरण के खिलाफ एक विद्रोह के रूप में देख सकते हैं। यह ब्लागर्स और यूजर जेनरेटेड कंटेट की ही देन थी कि सन् 2006 में टाइम मैगजीन ने साल की शख्सियत के रूप में जिसे चुना वह 'यू' था, यानी एक आम नागरिक जो अब खुद को अभिव्यक्त कर सकता है। गौर करें तो बदलाव की इस आधी तस्वीर को पूरा कर रहे हैं अमेरिका के तमाम समाचार पत्र समूह- जो अब स्वीकारने लगे हैं कि समाचार एजेंसियों को अब खबर के प्राथमिक और विश्वसनीय स्रोत भर होने की अपनी भूमिका में बदलाव लाना होगा।

भारतीय संदर्भ में देखें तो युवाओं का राजनीतिक रुझान तेजी से घटा है। उदारीकरण के बाद युवाओं में राजनीतिक उदासीनता के चलते ही भाजपा जैसी पार्टियों ने बीते चुनाव में उनका राजनीतिक ध्रुवीकरण कॉलेज कैंपस की बजाय सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए करने का प्रयास किया। तस्वीर का दूसरा दिलचस्प पहलू था मतदाताओं को जागरुक करने का अभियान। मुंबई वोटर्स, स्मार्ट वोटर्स , जागो रे और रफ्तार जैसी वेबसाइट्स ने लोगों को वोटर आईडी हासिल करने, वोट डालने से संबंधित जानकारी देने के अलावा लोकसभा प्रत्याशियों का प्रोफाइल भी मुहैया करा दिया।

शायद माध्यम का यह लचीलापन ही इससे उम्मीद जताता है। यह आरंभिक दौर में छापाखाने के 'बुलेटिन' अथवा 'उपदेशात्मकता' और टेलीविजन की 'डिक्टेटरशिप' के विपरीत ज्यादा प्रजातांत्रिक माध्यम है। इसीलिए दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी में इस 'प्रजातांत्रिक माध्यम' की अहमियत बढ़ जाती है। क्योंकि यह बोलने और जानकारी हासिल करने की आजादी देता है।
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यह आलेख 'समकालीन जनमत' के दिसंबर अंक में प्रकाशित

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

गूगल-गूगल कित्ता पानी


गूगल ने पिछले दिनों समंदर के भीतर भी कदम रख दिए। गूगल अर्थ के बाद की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना गूगल ओशन में हमारी दुनिया में मौजूद महासागरों और साइबर स्पेस में सूचनाओं के महासागर का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। सतह के भीतर की समुद्री दुनिया का थ्री-डी सैर के बीच आप दुनिया के जाने-माने साइंटिस्ट, रिसर्चर और समुद्री खोजकर्ताओं से मिली जानकारियों को महज एक क्लिक में हासिल कर सकते हैं। दरअसल गूगल ओशन की अनोखी परिकल्पना को हम एक सिंबल के रूप में देख सकते हैं।

हकीकत यह है कि गूगल लगातार उन क्षेत्रों में विस्तार करता जा रहा है, जिनके बारे में पहले कभी सोचा ही नहीं गया था। इस वक्त गूगल अर्थ के जरिए नदियों की हजारों मील लंबी विलुप्त सीमाओं को मापने का काम चल रहा है। माना जा रहा है कि यह भविष्य में कई अंतरराष्ट्रीय विवादों का निबटारा करने में मदद पहुंचायेगा। डरहम विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय सीमा शोध इकाई के रिसर्चर्स ने पाया कि विश्व की नदियों की सात फीसदी सीमा रेखा विलुप्त हो गई है।

दूसरी तरफ भारत जैसे देशों में गूगल अपनी मैप मेकर सेवा का विस्तार कर रहा है। इसकी मदद से लोग अपने-अपने इलाकों के नक्शे तैयार कर सकते हैं। भारत जैसे बड़े देश के लिए जहां कई इलाकों के सही और विस्तृत नक्शे उपलब्ध नहीं हैं, वहां गूगल की मैप मेकर सेवा एक वरदान बनकर सामने आई है। सेवाओं में विस्तार की नीति के तहत गूगल ने अमेरिका की घरेलू सेवाओं में भी कदम रख दिया है। वहां गूगल की एक नई सेवा के तहत लोग घर में बिजली व कुकिंग गैस की दैनिक खपत को जान सकेंगे। जानकारी उनको हर घंटे अपने कंप्यूटर या मोबाइल पर मिल जाएगी। ‘गूगल पावर मीटर’ नाम की इस सेवा से अगले 10 साल में 10 करोड़ लोगों को जोड़ने का इरादा है। इसके लिए तैयार एक खास सॉफ्टवेयर आईगूगल के होम पेज से डाउनलोड किया जा सकेगा। वहीं सैन फ्रांसिस्को में गूगल ने अपनी वॉइस मेल सेवा को आम लोगों के लिए खोल दिया है। लोगों की जरूरतों को देखते हुए सेवा में कई सुधार भी किए गए हैं।

गूगल भारत में अपनी इसी रणनीति का विस्तार चाहता है, इसके संकेत हाल ही तब मिले जब गूगल ने नागरिकों को विशेष पहचान संख्या (यूआईडी) देने की महत्वाकांक्षी परियोजना से जुड़ने का इरादा जाहिर किया। गूगल इंडिया के प्रबंध निदेशक ने मीडिया से कहा था कि कंपनी अपनी तरफ से सरकार से संपर्क नहीं करेगी, यह फैसला सरकार को करना होगा कि हम कैसे मददगार हो सकते हैं।

कंपनी भारत में थ्री-जी की भी गहराई से स्टडी कर रही है। गूगल की दिलचस्पी देश में बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम में बढ़ रही है। माना जा रहा है कि भारत में ब्रॉडबैंड वायरलेस तकनीक का इस्तेमाल तेजी से बढ़ने जा रहा है और फिक्स्ड लाइन इंटरनेट की जगह मोबाइल इंटरनेट पर विज्ञापनों की भरमार हो जाएगी। ऑनलाइन बिजनेस में गूगल ऐडवर्टीजमेंट्स की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है, इसलिए गूगल का रुझान नेचुरल है। अभी गूगल ने मोबाइल फोन पर ऐड अवेलवेल कराने वाली कंपनी एड़ोब को खरीदने के लिए 75 करोड़ डॉलर चुकाने के फैसले के साथ ही ऑनलाइन मोबाइल विज्ञापन में विस्तार की कंपनी की रणनीति का संकेत दे दिया है।

इंटरनेट सर्विसेज़ में भी गूगल का एकाधिकार है। गूगल ने क्रोम वेब ब्राउजर लांच करने के नौ महीने बाद ही क्रोम आधारित वेब ब्राउजर की झलक भी दिखा दी। कंपनी का मकसद लोगों को एक ऐसा आपरेटिंग सिस्टम देना है जो तेज हो और इंटरनेट से लगातार जुड़ा हो। नेटबुक खोलते ही क्रोम ओएस खुल जाएगा यानी यूजर को ओपरेटिंग सिस्टम लोड होने का इंतजार नहीं करना होगा। इसे ओपेन सोर्स की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है और इसमें यूजर अपनी जरूरत के मुताबिक बदलाव कर सकेगा।

यूजर को दी जाने वाली अन्य सुविधाओं में एक 'सोशल सर्च' इंजन पर गूगल काम कर रहा है। इसके जरिए ब्लॉग्स और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर मौजूद लोगों को आसानी से ढूंढ़ा जा सकेगा। वहीं एक साल के भीतर जीमेल को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में बदलने का इरादा है। इसके अलावा गूगल पर प्रतिदिन लाखों की संख्या में गानों से संबंधित खोज की जाती है। लिहाजा गूगल ने lala.com और मायस्पेस के ilike.com से गठबंधन किया है। अब जब भी गूगल पर किसी गाने की खोज की जाएगी तो गाने से संबंधित कड़ियों के अलावा म्यूज़िक प्लेयर भी दिखेगा, जिसकी मदद से गाने को सुना जा सकेगा।

इतना ही नहीं इंटरनेट ब्राउज़िंग को नया आयाम देने और आँकड़ों के ओनलाइन स्थानांतरण को तेज गति प्रदान करने के लिए गूगल की टीम एक नए प्रोटोकोल को विकसित कर रही है। इस पूरी परियोजना का नाम है प्रोजेक्ट स्पीडी. प्रोजेक्ट के तहत एक नया इंटरनेट प्रोटोकोल विकसित किया जा रहा है जो है – spdy:// . गूगल के अनुसार यह नया प्रोटोकोल वर्तमान प्रोटोकोल http:// से अधिक तेज कार्य करेगा।

इस तेज विस्तारवादी नीति के चलते गूगल कई बार विवादों में भी घिर जाता है। इन विवादों की ताजा कड़ी में दुनिया की दो बड़ी समाचार संस्थाओं की यह टिप्पणी शामिल है कि गूगल सहित अन्य सर्च इंजनों को न्यूज़ उपलब्ध कराने के बदले भुगतान करना होगा। रूपर्ट मर्डोक तो गूगल द्वारा उनके न्यूज़ कंटेट के इस्तेमाल पर रोक लगाने की तैयारी में हैं। भारत में गूगल तब विवादास्पद हुआ जब गूगल अर्थ में सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील हिस्से आसानी से देखे जाने लगे। दूसरा विवाद उस वक्त हुआ जब उसने गूगल-मैप में भारतीय भूभाग को चीन का हिस्सा दिखाना शुरू कर दिया। हालांकि कुछ खबरों के मुताबिक बीच में गूगल ने इसे मानवीय भूल बताते हुए संशोधित करने की बात भी कही थी। वहीं चीन के विदेश मंत्रालय ने आरोप लगाया कि इंटरनेट सर्च इंजन गूगल का अंग्रेजी संस्करण अश्लील सामग्री फैलाकर देश के कानून का उल्लंघन कर रहा है।

मगर गूगल की तेज रफ्तार के बीच यह छोटे-मोटे झटके ही कहे जाएंगे। जैसा कि मैंने पहले कहा कि महासागर की गहराइयों को नापने के साथ-साथ वह सूचना महासागर की अथाह गहराइयों में डुबकी लगा रहा है। हम तो हर रोज उनके नए एप्लीकेशंस और सर्विसेज के बीच यही पूछ सकते हैं, गूगल-गूगल कित्ता पानी....
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'आई-नेक्स्ट' में 22 नवंबर 2009 के अंक में प्रकाशित
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